जनवरी 2017 में अमेरिका के प्रथम एफ्रो-अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा का कार्यकाल खतम हो जाएगा और श्वेत डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल आरंभ. 2008 में जब पहली बार बराक ओबामा विश्व के सबसे विकसित प्रजातंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे तो वह अमेरिका के लिए ही नहीं विश्व के लिए सुखद पल था क्योंकि वे पहले एफ्रो-अमेरिकन थे जो व्हाइट हाउस में प्रवास करने जा रहे थे. जिस अमेरिका में एफ्रो-अमेरिकियों, जिन्हें पहले निग्रो कहा जाता था, को दास प्रथा झेलनी पड़ी. फिर रंगभेद का जहर पीना पड़ा. ना ना प्रकार की यातनाएं सहनी पड़ी. जहां ब्लैक पैंथर्स आंदोलन चला और जहां मार्टिन लूथर किंग जूनियर की आंदोलन के दौरान हत्या हुई. उसी देश में एक एफ्रो-अमेरिकन राष्ट्रपति बने, यह वास्तविकता में बदलते हुए अमेरिका का परिचायक था.
देखते ही देखते बराक ओबामा अमेरिका के ही नहीं बल्कि विश्व की दबी-कुचली एवं हाशिए पर फेंक दी गई जनता की अपेक्षाओं का केंद्र बन गए. पूरे विश्व के शोषित लोगों एवं देशों ने इसका स्वागत किया. भारत के लोग इसका अपवाद नहीं थे. भारत में विशेष कर दलितों, पिछड़ों एवं मूलनिवासियों ने जोर से यह प्रश्न पूछा कि- ‘कब आएगा भारत का ओबामा?‘ ओबामा के साथ-साथ उनकी पत्नी मिशेल ओबामा एवं दो बच्चियों ने भी अमेरिका के पहले परिवार के सदस्य के रूप में अपनी सादगी का शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया. ओबामा के आठ वर्षों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने आचरण से किसी को भी शिकायत का मौका नहीं दिया. ओबामा की एक बच्ची ने आत्म सम्मान का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए पिज्जा स्टोर में पिज्जा बेचने से गुरेज नहीं किया.
दूसरी ओर ओबामा ने एफ्रो-अमेरिकन और एफ्रो-अमेरिकी, मूलनिवासियों, हिस्पैनिकों, लेटिनों, एशियाई मूल के लोगों, मजदूरों, LGTD (लेस्बियन, गे एंड ट्रांसजेंडर) का एक सप्तरंगी एवं मजबूत गठजोड़ बनाकर नवीन राजनीति की संकल्पना गढ़ी. उन्होंने उनके कल्याण के लिए ओबामा केयर जैसी सामाजिक एवं स्वास्थ्य सुरक्षा की नीति को क्रियान्वित कर अमेरिका की मेडिकल एवं इनश्योरेंस इंडस्ट्री से डटकर मुकाबला किया, इसके लिए वे गरीबों के बीच हमेशा याद रखे जाएंगे.
परंतु जिस तरह से नवंबर 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिकी नागरिकों ने ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी की हिलेरी क्लिंटन को हराकर रिपब्लिकन पार्टी के श्वेत मूल के डोनाल्ड ट्रंप को चुना उससे यह प्रतीत होता है कि अमेरिका अभी पूरी तरह से श्वेत मूल की वर्चस्वता से मुक्त नहीं हुआ है. क्या अब कभी अमेरिका में कोई दूसरा ओबामा पैदा होगा?
लेखक जेएनयू में प्रोफेसर हैं.
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