वर्धा। डॉ. सुनील कुमार सुमन अन्यायपूर्ण तरीके से किए गए अपने ट्रांसफर के खिलाफ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा प्रशासन के खिलाफ अनशन पर बैठ गए हैं. वर्धा विश्वविद्यालय जातिवाद का गढ़ बनता जा रहा है. खासकर नए कुलपति प्रो गिरीश्वर मिश्रा के आने के बाद तो जैसे ब्राह्मणवाद ही इस विश्वविद्यालय की पहचान बनती जा रही है. यहां भाई-भतीजावाद और परिवारवाद का खेल खुलेआम होता है. डॉ. सुनील कुमार के समर्थन में वहां का छात्र समुदाय भी खुलकर सामने आ गया है. छात्र संगठन अंबेडकर स्टूडेंट्स फोरम डॉ. सुनील कुमार सुमन को अपना समर्थन दे रहा है. संगठन की तरफ से कुलपति के नाम एक ज्ञापन भी दिया गया है.
ज्ञापन में कहा गया है कि सहायक प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार वर्धा विश्वविद्यालय के बेहद लोकप्रिय अध्यापक हैं. वे ऐसे अध्यापक हैं, जो अपने विभाग से इतर दूसरे विभागों-केंद्रों के विद्यार्थियों के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं. इसका कारण उनका मृदुभाषी-सहयोगी स्वभाव और छात्रों को हमेशा बेहतर बनने-करने के लिए प्रेरित करने वाली उनकी प्रकृति है. वे इस विश्वविद्यालय के एकमात्र आदिवासी वर्ग के प्राध्यापक हैं. डॉ. सुनील कुमार की पहचान राष्ट्रीय स्तर के आदिवासी लेखक-विचारक और एक्टिविस्ट के रूप में प्रतिष्ठित है. विदर्भ के तमाम ज़िलों तथा देश के कई विश्वविद्यालयों-शहरों के दलित-आदिवासी कार्यक्रमों में डॉ. सुनील कुमार को अतिथि वक्ता के रूप में हमेशा बुलाया जाता है. डॉ. सुनील कुमार को क्षेत्र की जनता द्वारा कई बार गोंडवाना भूषण पुरस्कार, शिक्षण मैत्री सम्मान और समाज भूषण सम्मान जैसे पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है.
गौरतबल है कि डॉ. सुनील कुमार को विश्वविद्यालय में शुरू से ही उनको जातिगत आधार पर प्रताड़ित किया जाता रहा है. पिछले कुलपति के कार्यकाल में भी ऐसा हुआ और अब भी ऐसा ही हो रहा है. उच्च प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों ने जातिगत भावना से निर्णय लेते हुए डॉ. सुनील कुमार का स्थानांतरण कोलकाता केंद्र पर किया गया है. वे दो साल तक नौकरी से बाहर रहे, केस-मुक़दमा झेला, आर्थिक दिक्कतें सहीं और मानसिक पीड़ा भी झेली है. फिर साहित्य विभाग में इतने अध्यापकों के रहते हुए डा. सुनील कुमार को ही क्यों कोलकाता भेजा रहा है ? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसे ही दलित-आदिवासी छात्रों-शिक्षकों को यहाँ परेशान करता रहेगा ?
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