सीवर में मौत कोई नयी घटना नहीं है . प्रभात खबर केएक सरकारी रिपोर्टर के अनुसार (9 अगस्त 2017 ) तक 22,327 सफाई कर्मी लोगो की मौत सीवर में दम घुटने से हुई है. 14 जुलाई 2017 को दक्षिण दिल्ली के घिटरोली गावं में चार सफाईकर्मी जिनका नाम , स्वर्णसिंह, अनिल कुमार, दीपू, बलविंदर की मृत्यु सैप्टिक टैंकसफाई में दम घुटने की वजह से हुई थी. अभी एक माह भी नहीं हुआ कि दूसरी घटना लाजपत नगर में 6 अगस्त 2017 की सुबह फिर से दुहरा दी गयी. सीवर, सैप्टिक टैंक सफाई का चार्ज दिल्ली जलबोर्ड के आधीन होता है जिसकी जिम्मेदारी सम्बन्धित इन्जिन्यर और जलबोर्ड अधिकारियो की होती है. परन्तु आजकल अनुभवहीन सवर्ण ठेकेदारों के जिम्मे इस काम को सौप कर अधिकारी व् इंजीनियर निश्चिन्त हो जाते है. ज्ञातव्य है कि सन 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने मैनुअल स्क्वैन्जर एंड रिहैब्लटेशन एक्ट 2013 के तहत किसी भी कर्मचारी को सीवर में उतारना गैर क़ानूनी कर दिया था. सीवर में मरने वालो के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 10 लाख की राशि परिवार के लिए निश्चित भी की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की खुले आम अवहेलना की जा रही है, यंहा तक कि सफाईकर्मी को धड्ल्ले से सीवर में उतार दिया जाता है जिसका परिणाम उनकी भयंकर मौत के रूप में आये दिन देखने को मिलती है. सफाई कर्मी की मृत्यु के बाद दो दिन की सुर्खियों के बाद, फिर से उनेह कही पर भी उनेह बेधड़क सीवर में उतार दिया जाता है. ठेकेदारों और जलबोर्ड के अधिकारियो की संवेदनहीनता दृष्टिगत हो उठती है. लाजपतनगर में सीवर में उतरे तीनो युवक डेली वेजेस पर थे. उनेह इस काम के बदले 300-350/ रूपये दीये जाते थे. एक कर्मचारी मंथली सैलरी पर था जिसकी तनख्वाह 8000/ थी लेकिन उसे 2000 -5000/ रूपये तक मिलते थे. सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी इस अस्वच्छ कार्य हेतु नहीं दिया जाता. तीनो कर्मचारियों की उम्र 20 -32 वर्ष थी. चोथा कर्मचारी राजेश जो तीनो की खोज खबर लेने सीवर में उतरा थे वो भी जा कर बेहोश हो गया जिसे आम जनता ने अपनी मशक्कत से बाहर निकालाकर अस्पताल में दाखिल किया गया तत्पश्चात इलाज के बाद थोडा स्वस्थ हुआ. चार सदस्यीय दल सफाई कर्मचारी आयोग के नेतृत्व में तीनो कर्मचारियों के घर पर उनके परिवारों से मुलाक़ात करने और मौके पर घटी घटना की जानकारी लेने पहुंचा. सबसे पहले हम लोग पूछ पूछ कर कल्यानपुरी मन्नू के घर गये. छोटी छोटी तंग गलियों से गुजरते हुए हमें एसा लगा की हम स्वम् किसी गटर से गुजर रहे है. इन गलियों से एक साथ तीन व्यक्ति एक साथ नहीं चल सकते. ऊपर की छतों से गलिया पटी हुई थी. गलिय पार करके हम एक पार्क में पहुंचे. पार्क तो नाम का था दरअसल वह एक खुली जगह थी जिसके एक तरफ वाल्मीकि समाज रहता है. एक हजार परिवार का वाल्मीकि समाज इस दमघोटू माहौल में रहने का अभ्यस्त दीखा. ज्यादातर लोग सफाई के काम में लिप्त है यंहा करीब 200 महिलाए भी बाहर जा कर सफाई का काम करती है. मोनू के घर के सामने भरी धुप में एक सस्ता सा सामियाना टंगा हुआ था. एक तरफ महिलाए बैठ कर रो रही थी, तो थोड़ी दूरी पर परिवार व् समाज के कुछ पुरुष बैठ कर बीडी पी रहे थे. मोनू पुत्र श्री फूल सिंह उम्र 22 वर्ष जिसके दो बच्चे थे. गोद में एक बेटी जो अभी केवल ढाई महीने की थी और एक बेटा जो डेढ़ साल का था. उसकी पत्नी प्रीति 20 वर्ष की जिसने अभी जीवन के कोई सुख नहीं देखे थे गोद में दो बच्चो को ले कर विधवा हो गयी थी. अन्नू बेरोजगार था अतः डेली वजेस पर इसी तरह के काम करने चले जाता था. बीबी बच्चो के साथ साथ बुजुर्ग माँ-बाप की जिम्मेवारी भी उसके सर पर थी. सरकार और ठेकेदारों की मिली भगत से इस परिवार का एक जिम्मेदार कमाने वाला नौजवान जवानी आने से पहले ही दुनिया सिधार चुका था, मोनू के घर की हालत जान कर दुखी मन से हम दुसरे केस जोगिन्दर के घर खिचड़ीपुर की झुग्गियो में गये जन्हा पहले से ही केंद्र सरकार के एक संसद सदस्य, अनुसूचित जाती आयोग के अध्यक्ष वंहा पहुंचे हुए थे.
उनके वंहा जाने के बाद जोगिन्दर के बारे में पता चला कि उसकी उम्र ३२ वर्ष थे और बेरोजगारी के आलम की वजह से उसने शादी ही नहीं की थी.खिचड़ीपुर में वाल्मीकि समाज की करीब 600 घर थे. यंहा भी ज्यादातर लोग सफाई के काम में लिप्त है. यंहा की 60 प्रतिशत महीलाए भी बाहर काम करने जाती रही है. जोगिन्दर के घर से निकल कर हम लोग तीसरे केस दल्लू पूरा के दुर्गा पार्क में अन्नू के घर गये. यह एक मिक्स आबादी का घर था. कोण पर एक दूकान थी हमने उनके घर के बारे में पूछा तो गली में खड़े एक नौजवान ने इशारा करके हमें घर बताया, यह युवक दैनिक जागरण का फोटो ग्राफर था, सरकार की टीम का इन्जार कर रहा था. हमने घर पर दस्तक दी तो एक युवक बहर आया तो हमने बाते कि हम अन्नू के बारे में आये है हम जैसे ही घर में प्रवेश कर रहे थे तो बीच में ही हमे खुला शिट देखा, हम उसे पार करके घर में बैठे तो पता चला कि अन्नू की उम्र 28 वर्ष थी उसकी पत्नी की उम्र 27 साल थी उनका छ साल का बेटा भी था. अन्नू मासिक तनख्वाह पर था लेकिन उसे कभी पूरी तनख्वाह नहीं मिले कभी 2000/, कभी 4000/, कभी 5000/ से ज्यादा उनेह तनख्वाह नहीं मिली. उनकी पत्नी ने बताया कि घर खर्च चलने के लिए वो अपने मायके से वितीय मदद लगातार लेती रही है, यहां तक कि बिजली का बिल और बच्चे की 500/ फीस अपनी माँ और भाई से लेती है. अन्नू की माँ और भाई पत्नी और उसका 6 वर्ष का बच्चा अन्नू को खो कर बहुत ही दुखी दिख रहे थे.
रक्षाबंधन पर मिली भाई की लाश, बहने बाँध न सकी राखी
6 अगस्त की सुबह तीनो कर्मचारी घर से यह कह कर निकले कि कल रक्षाबंधन है बहने घर आएंगी तो काम करके थोडा पैसा हाथ में आजएगा तो त्यौहार मना लेंगे. अनुसूचित जातियों में ज्यादातर उप-जातिया हिन्दू परम्परा और त्यौहार मानाने के अभ्यस्त है, क्योंकि वे खुद को हिन्दु ही मानते रहे है. तीनो कर्मचारी जब शाम तक घर नहीं लौटे तो यही समझा गया कि अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर रहे होंगे. रात के दस बजे पुलिस का फोन रेखा पत्नी अन्नू को आया कि आपके पति बीमार है लाजपत नगर अस्पताल में सुबह आ जाना , पता पूछने पर कोई जबाब नहीं दिया गया. सुबह 10 बजे दुबारा से किसी का फोन आया कि अस्पताल से बॉडी ले जाओ. दिनभर और रात भर ये खबर पुलिश और जलबोर्ड ने ये सुचना घरवालो से छुपा कर रखी कि उनकी जीवन लीला 6 अग्स्त की दोपहर समाप्त हो चुकी थी. ये कैसी विडंबना है ? 7 अगस्त जब बहने राखी बाँधने भाइयो के घर आई तो उनेह भाई की कलाई पर राखी नहीं कफन देखने को मिला. यह खबर क्यों छुपायी गयी? क्यों परिवार को अँधेरे में रक्खा गया? ऐसा सदमा परिवार को क्यों दिया?
सीवर में मौत शाहदत क्यों नहीं मानी जाती?
देश में तीन लोग महत्वपूर्ण है. सफाई कर्मचारी- किसान और बार्डर पर सैनिक. किसान अन्न उगा कर देश का पेट भरता है और सफाई कर्मचारी देश के भीतर खुद अस्वच्छ प्रक्रिया से गुजर कर देश को साफ सुथरा रखता है, नाली, सीवर, सेफ्टीटैंक, गटर मैनहोल साफ रखता है. बॉर्डर पर सैनिक को सम्मान जनक तनख्वाह , पेंशन, शहीद होने पर विधवा को कोटे से पैट्रोलपम्प आदि दिया जाता है ताकि उसका परिवार एक सम्मानजनक जिन्दगी जी सके और और उसके बच्चो का भविष्य उज्जवल हो सके . पिछले वर्ष बॉर्डर पर ६० जवान शहीद हुए जबकि उनकी तुलना में देश के भीतर 1471 सफाईकर्मी मौत के घाट उतर गये.यह दोगला व्यवहार क्यों? सफाई कर्मी को न यूनिफार्म है, न ईएसआई सुविधा, न नयूनतम वेतन, न सम्मानजनक व्यवहार , न ही मरने के बाद उनके बच्चो के भविष्य की सुरक्षा ?
एसा क्यों? क्या हम आज के लोकतांत्रिक व्यवस्था में पुश्तैनी धंधो को क्या जातिगत पेशे में सुरक्षित रखना चाहते है? क्या सफाई कर्मचारी इस देश का नागरिक नहीं? सफाई कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये आर्डर की अवहेलना क्यों की जा रही है ? वर्तमान सरकार का दायित्व है की इस पर अपनी पैनी नजर रख कर पीडितो को न्याय
दिलाये और अपराधियों को सख्त् से सख्त सजा दिलाये.
हमारी मांगे :
– गटर, सीवर, मैनहोल, सैप्टिक टैंक की सफाई अनिवार्य रूप से मशीनों से करवाई जाए.
– ठेकेदारी व्यवस्था समाप्त की जाए
– सफाई कर्मियों की भर्ती स्थायी की जाए
– सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागु किया जाए
– महिलाओ के लिए शौचालय , खाना खाने व् बैठने की जगह की व्यवस्था की जाए
– क्रेच व् बच्चो के लिए खेलने व् पढने की व्यवस्था की जाए
– महिलाओ को प्रसूति अवकाश वेतन सहित दिया जाए, एवं एबोरशन लीव भी मुहैय्या हो
– एवजिदारो एवं अस्थायी कर्मचारियो को न्यूनतम वेतन दिया जाए
– चिकित्सा सुविधा, युनिफोर्म , जूते ,एवं कार्यस्थल पर उपयोगी वस्तुए उपलब्ध हो.
– जीपीएफ,लोन, एच.आर.ए एवं अन्य वितीय सुविधा अन्य सेवाओ की तरह सुगम की जाए
– रिटायर्मेंट पर उनका पूरा पैसा दिया जाए और पेंशन भी नियमित रूप से दी जाए.
भवदीय
कांता बौध (राष्ट्रिय दलित महिला आन्दोलन ) रजनी तिलक (अ.भ. दलित लेखिका मंच) डॉ. हंसराज सुमन (चेयरमैन-फ़ोरम आफ एकेडमिक फार सोशल जस्टिस), प्रोफेसर धर्मपाल पीहल( अध्यक्ष- प्रबुद्ध भारत)
PH. 8106487604,9871115382,9717114595,9247486278
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