राशन खरीदने के लिए आदिवासी करते हैं 110 किमी पैदल सफर

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दंतेवाड़ा। देश के केद्र सरकार या राज्य सरकारें कितने भी विकास के दावे कर ले, लेकिन जमीनी स्तर पर विकास दिखाई नहीं दे रहा है. दलित, पिछड़ा, आदिवासी, मजदूर और गरीब रोजमर्रा की जरूरतों को पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहा है. लेकिन सरकारें सिर्फ विकास का दावा कर रही है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग(एनएचआरसी) का एक नोटिस सरकारी विकास के दावे की पोल खोल रहा है.

दरअसल, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बरकेकलेड गांव के ग्रामीण अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं को लेने के लिए 110 किलोमीटर की दूरी तय कर ब्लाक मुख्यालय जाते हैं. आदिवासी बाहुल्य इस गांव से ब्लाक मुख्यालय की दूरी तय करने के लिए ग्रामीणों को कठिन और दुर्गम इलाकों से गुजरना पड़ता है.

आयोग का कहना है कि ग्रामीण 35 किलोग्राम चावल, 2 किलोग्राम चीनी, 2 लीटर केरोसिन, नमक की खरीद के लिए अपनी ज़िंदगी खतरे में डाल रहे हैं. सरकारी दर से उक्त समाग्री की कीमत महज 100 रुपए है. यह समाग्री लेने के लिए ग्रामीणों को 110 किलोमीटर का ​कठिन सफर तय करना पड़ रहा है.

1 नवंबर को मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी इस नोटिस में सरकार से चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी गई है. एनएचआरसी ने अपने मुख्य सचिव के माध्यम से, छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी किया है. इसमें बताया गया है कि राशन के लिए बरकेकलेड और सैंड्रा गांव के निवासियों को इतना लंबा सफर करना पड़ता है, क्योंकि उनके गांव में राशन की दुकान नहीं है.

आयोग को यह भी पता चला है कि छत्तीसगढ़ में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां लोगों को इस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. आयोग का कहना है कि मामले में जिला प्रशासन की कठोर लापरवाही सामने आ रही है. यह स्पष्ट रूप से ग्रामीणों के मानवाधिकारों के उल्लंघन के बराबर है. इसमें ग्रामीणों का पूरा दिन लग जता है. क्षेत्र नक्सली गतिविधियों के लिए जाना जाता है. यहां स्थित वन क्षेत्र जंगली जानवरों से भरा है. ऐसे में प्रशासन को उचित कदम उठाने चाहिए.

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