बुंदेलखंड में खत्म होने के कगार पर एक ‘कुप्रथा’

बुंदेलखंड। यूपी के बुदेलखंड में दलित महिलाएं सालों से फैली कुरितियों के खिलाफ आ गई हैं. बुंदेलखंड के ललितपुर की बात करें तो यहां दलित महिलाएं घर के बड़े-बुजुर्गों और ऊंची जातियों के लोगों को देखकर चप्पल सर या फिर हाथ में ले लेती थी. ऐसा वह वर्षों से कर रही थीं, लेकिन अब वह इससे निजात चाहती हैं.

अगर महिलाएं गलती से चप्पल पहनकर बड़े लोगों के सामने चली जाती थीं तो उनपर जुर्माना लगाया जाता था. यह परंपरा पुरुषों पर भी लागू होती थी. जब कोई पुरुष गांव के कथित उच्च लोगों के घर जाता तो उसे ऐसा करना पड़ता था. महरौनी गांव की राधा देवी ने बताया कि चाहे जितनी सर्दी हो, तपती धूप हो, हमें बड़ी जाति के लोगों के सामने चप्पल पहनने की अनुमति नहीं थी. आज भी प्रधान के पास हमारे बुजुर्ग चप्पल पहनकर नहीं जाते, अगर जाते भी हैं तो हाथ में चप्पल लेकर जाते हैं. लेकिन समय के साथ और शिक्षा के प्रसार के कारण अब यह परंपरा खत्म होने लगी हैं. अब न तो महिलाएं इस परंपरा को निभा रही हैं और न पुरुष ही उनसे ऐसा करने के लिए दबाव बना रहे हैं.

ललितपुर गांव की रहने वाली मीरा बताती हैं कि अब हम अपने घर से चप्पल पहनकर निकलते हैं. विरोध करने वाली महिलाओं की संख्या अभी बहुत ज्यादा नहीं है, पर बदलते समय के साथ एक दूसरे के देखा-देखी नई नवेली बहुएं चप्पल पहनकर निकलने लगी हैं. समय के साथ और शिक्षा के प्रसार के कारण अब यह परंपरा खत्म होने लगी हैं. अब न तो महिलाएं इस परंपरा को निभा रही हैं और न पुरुष ही उनसे ऐसा करने के लिए दबाव बना रहे हैं. वर्तमान में देखें तो अब सिर्फ एक से दो प्रतिशत महिलाएं ही इस परम्परा को मानते हैं, बाकि ये प्रथा अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है. बदलते वक्त के साथ अब इन महिलाओं की चप्पल हाथों की बजाय पैरों की शोभा बढ़ा रही हैं.

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