दलितों की मुक्ति में ही मानव और भारतीय समाज की मुक्ति

पटना। दलितों के साथ सदियों तक समाज में जाति के नाम पर भेदभाव होता रहा है. आज भी दलितों की कुछ विशेष पीड़ा है, जो उच्चजाति के लोगों को नहीं झेलनी पड़ती. दलितों की मुक्ति में ही मानव और भारतीय समाज की मुक्ति है. यह बातें गुरुवार को चर्चित साहित्यकार अरुण कमल ने कही.

वह सेंट जेवियर्स स्कूल, गांधी मैदान के मुख्य हॉल में हिंदी दलित साहित्य में मानव मुक्ति की अवधारणा, के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक दलित साहित्य को समझने में काफी मददगार साबित होगी. इससे पूर्व जेवियर इंस्टीच्युट ऑफ सोशल साइंस के प्रो. जोस कलापुरा ने लेखक डॉ. सुशील बिलुंग का परिचय कराया. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक दलित साहित्य की पड़ताल करती है. इसे पढ़कर दलित साहित्य की बेहतर समझ विकसित होगी. पुस्तक दलित साहित्य में मानव मुक्ति की अवधारणा को समझने में मददगार साबित होगी.

इस मौके पर साहित्यकार और अरविंद महिला कॉलेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. शिवनारायण सिंह ने कहा कि इस पुस्तक में साहित्य, दर्शन, विचार और आंदोलन मौजूद हैं. इस पुस्तक में विषम परिस्थितियों से जूझ रहे आमजनों के संघर्ष की दास्तान को पढ़ा जा सकता है. पुस्तक आमजनों के संघर्ष के साहित्य के स्वरूप और उसकी मौजूद उपस्थिति से रूबरू कराती है. चर्चित रंगकर्मी और लेखक हसन इमाम ने कहा कि पुस्तक दलित साहित्य के अंदर मौजूद विभिन्न अंतरविरोधी प्रवृत्तियों, इसके इतिहास और समकालीन समय में चल रहे आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य की मीमांसा करता है.

उन्होंने कहा कि समकालीन दलित आंदोलन का विमर्श दलित साहित्य का विमर्श है. यह बात इस पुस्तक में गंभीरता से उठाई गई है. कार्यक्रम में पुस्तक के लेखक डॉ. सुशील बिलुंग ने पुस्तक की रचना प्रक्रिया, पुस्तक लेखन यात्रा का जिक्र करते हुए पुस्तक में उठाए गए विमर्श को रेखांकित किया. कार्यक्रम का संचालन प्रो. दीप कुमार ने किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रवीण मधु ने किया. इस अवसर पर संत जेवियर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. निशांत, सामाजिक कार्यकर्ता विनय ओहदार, रंगकर्मी पवन यादव, रौनित कुमार, सत्यम परासर, र|ेश पांडे, अरमान कुमार सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद थे.

साभार- दैनिक भास्कर

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