यूपी में बसपा की राह चली कांग्रेस

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उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी भले ही सत्ता में न आ पाई हो, बसपा प्रमुख मायावती द्वारा दलित-मुस्लिम गठबंधन की कोशिश ने सबके होश उड़ा दिए थे. विपक्षी भी मायावती के इस राजनीतिक पैतरे से परेशान थे. माना जा रहा था कि बसपा बहुमत से सरकार बनाने की होड़ में है. हालांकि बसपा के समर्थन में दलित समाज के लोग तो आए लेकिन मुस्लिम समाज ने बसपा से परहेज किया, नतीजा 22 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद बसपा सीटों के नंबर नहीं बढ़ा सकी.

कांग्रेस पार्टी भी अब यूपी में बहुजन समाज पार्टी के उसी फार्मूले पर चलने को तैयार है. और कांग्रेस की ओर से इस फार्मूले के मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी बनेंगे. पूर्व बीएसपी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को शामिल करने के पीछे कांग्रेस की मंशा यही है.

असल में कांग्रेस की नजर एक बार फिर से तीन दशक पुराने दलित-मुस्लिम जातीय गठजोड़ पर है. कांग्रेस जिग्नेश मेवाणी के बहाने जहां दलितों का साथ हासिल करने में जुटी है वहीं नसीमुद्दीन के बहाने सूबे में मुस्लिमों को जोड़ने का प्लान है.

तीन दशक पहले तक कांग्रेस दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण समाज के बल पर सत्ता हासिल करती रही. सन् 1984 में बसपा के उदय के बाद कांग्रेस का यह गठबंधन धाराशायी हो गया. तब से कांग्रेस संभल नहीं पाई, वह यूपी से लेकर देश की सत्ता तक में बाहर हो गई. अब कांग्रेस जान गई है कि अगर उसे सत्ता में आना है तो दलित और मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर लेकर आना होगा. इसी के लिए कांग्रेस जहां जिग्नेश मेवाणी को दलित चेहरे के तौर पर देश भर में पेश कर रही है तो मुस्लिम चेहरे के रूप में बसपा के ही पूर्व नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस के इशारे पर काम करेंगे. इन दोनों नेताओं के जरिए कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से दलित-मुस्लिम गठबंधन बनाने को बेताब है.

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