जेल में बंद नोबेल विजेता शाओबो का निधन, 8 साल से थे जेल में बंद

शेनयांग। नोबल पुरस्कार विजेता ली शाओबो का 61 साल की उम्र में चीन की जेल में निधन हो गया है. उन्होंने देश की साम्यवादी रूढ़ियों से परे जाकर लोकतांत्रिक खुलेपन का सपना देखा था. उनके संघर्ष को सम्मानित करते हुए 2010 में उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया था. उनके निधन के बाद नोबेल कमेटी ने चीन को उनकी मौत का जिम्मेदार ठहराया है वहीं मानव अधिकार वाले ली की पत्नी को आजाद करने का दबाव बना रहे हैं.

शाओबो ने थ्येनआनमेन चौक पर प्रज्ज्वलित हुई संघर्ष की मशाल निरंतर जलाए रखी. 2008 से वह जेल में थे लेकिन मान्यताओं से समझौता कभी नहीं किया. वह दुश्मन भी किसी को नहीं मानते थे, यह उन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘नो एनीमीज’ लिखकर साफ कर दिया था. किसी के प्रति घृणा का भाव भी नहीं था, यहां तक कि कम्युनिस्टों के प्रति भी नहीं. इसका सुबूत उनकी किताब ‘नो हेटर्ड’ देती है.

शेनयांग मेडिकल यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को बयान जारी करके शाओबो की मृत्यु की घोषणा की. उन्हें लिवर का कैंसर था जो जेल में रहते हुए ही बढ़कर अंतिम चरण में पहुंच गया था. जब हालत खराब हुई तब महीने भर पहले उन्हें जेल से निकालकर अस्पताल में भर्ती कराया गया.

शाओबो के इलाज के तरीके और स्तर को लेकर भी विवाद था. काफी कोशिश के बाद शाओबो तक पहुंचे अमेरिका और जर्मनी के डॉक्टरों ने उन्हें अविलंब विदेश के किसी अच्छे अस्पताल में पहुंचाने की आवश्यकता जताई थी लेकिन चीन सरकार उस पर तत्काल कुछ करने के लिए तैयार नहीं हुई. नतीजतन, गुरुवार को शाओबो चीन की बंदिशें तोड़कर दुनिया से विदा हो गए.

शाओबो को 2008 में चीन सरकार को राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव और मानवाधिकारों की मांग वाली याचिका देने के बाद गिरफ्तार किया गया था. यह याचिका चार्टर 08 के नाम से चर्चा में आई थी. अगले साल ही उन पर मुकदमा चलाकर 11 साल की सजा सुनाई गई. तभी से वह जेल में थे. इस दौरान उनकी पत्नी को नजरबंद कर दिया गया. लगातार तन्हाई में रहने की वजह से उनकी दशा विक्षिप्तों जैसी हो गई थी. उन्हें अपने पति से जेल में मिलने की इजाजत भी पूरे महीने में सिर्फ कुछ मिनटों के लिये थी.

बुधवार को शाओबो की दशा और बिगड़ गई थी जब उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें सांस लेने में भी कठिनाई होने लगी थी. बावजूद इसके उन्हें वेंटीलेटर सुविधा नहीं दी गई. मानवाधिकार संगठनों ने शाओबो के स्वास्थ्य के बारे में सही जानकारी न दिये जाने का आरोप लगाया था. कहा है कि भारी सुरक्षा वाले अस्पताल से गलत जानकारियां दी जा रही हैं.

नार्वेजियन नोबेल कमेटी के प्रमुख बेरिट रेज एंडरसन ने शाओबो की मौत के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि विश्व के कई देश उनका उपचार करने के लिए तैयार थे पर चीन नहीं माना. एंडरसन ने कहा कि 2010 में शाओबो जेल में थे जब उन्हें नोबेल मिला. तब खाली कुर्सी पर सम्मान को रखा गया था. उनका कहना है कि अब उनके सम्मान में इसे हमेशा खाली रखा जाएगा. अमेरिकी मंत्री रेक्स टिलरसन ने चीन से कहा है कि वह अब शाओबो की पत्नी को रिहा करके देश छोड़ने की अनुमति दे. जर्मनी के मंत्री हीको मास ने उन्हें हीरो करार दिया है. चांसलर एंजिला मर्केल के प्रवक्ता ने कहा कि उनकी मौत ने सवाल खड़ा किया है कि चीन सरकार ने उनका इलाज जल्द शुरू क्यों नहीं कराया.

उधर, चीन की सरकारी वेबसाइट पर शाओबो को लेकर सवाल हटा दिए गए हैं. इसके जरिये मीडिया को रोजाना ब्रीफ करने की व्यवस्था थी. चीन के मानवाधिकार कार्यकर्ता ए वेईवीई ने बर्लिन में कहा कि नोबेल विजेता की मौत चीन के क्रूर चेहरे का रूप है. मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि चीन का रवैया उसके अभिमान को दर्शाता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.