राजस्थान। एक फरवरी को अगर सरकार केंद्रीय बजट पेश न कर रही होती तो सुबह से लेकर शाम तक मीडिया में सिर्फ राजस्थान चुनाव की चर्चा चल रही होती, जहां कांग्रेस ने भाजपा को बड़ी शिकस्त दी है. राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया है. अपनी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा को इन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. अजमेर औऱ अलवर में जहां लोकसभा सीट पर चुनाव था तो मांडलगढ़ में विधानसभा सीट के लिए.
बीते दो सालों में भाजपा ने लोकसभा उप चुनावों में चौथी सीट गंवाई है. तो. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद अब तक हुए 16 उप चुनाव में भाजपा को 14 में हार का मुंह देखना पड़ा है, जबकि कांग्रेस ने उससे चार सीटें जीत ली हैं. इन नतीजों के बाद लोकसभा में कांग्रेस की सीटें बढ़ गई है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राजस्थान की 25 में से 25 सीटें हार गई थी, ऐसे में दो लोकसभा सीटों पर जीत के साथ राजस्थान में उसका खाता खुल गया है. इन नतीजों के बाद राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट का कद बढ़ गया है.
इसी साल दिसंबर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, उसके पहले यह हार भाजपा के स्थानीय नेतृत्व पर सवाल खड़ा करता है. असल में राजस्थान का उप चुनाव सिर्फ तीन सीटों और तीन प्रत्याशियों की जीत हार का मामला नहीं है. इन तीनों सीटों के लिए भाजपा ने अपने पंद्रह मंत्रियों और 14 विधायकों को लगा रखा था. उन पर इन तीनों सीटों को जिताने की जिम्मेदारी थी औऱ ऐसे में जब भाजपा की हार हुई है तो इसे इन सभी नेताओं की हार के रूप में देखा जा रहा है.
उपचुनावों में भजापा की लगातार होती हार ने अब पार्टी को परेशान करना शुरू कर दिया है. सिर्फ राजस्थान की बात करें तो पिछले चार साल में यहां 8 उपचुनाव हुए हैं, जिनमें छह में कांग्रेस विजयी रही है. पार्टी के सामने अभी 6 और उपचुनाव की चुनौती है. इसमें उत्तर प्रदेश के फूलपुर और गोरखपुर के साथ महाराष्ट्र में गोंदिया और पालघर लोकसभा समेत अभी दो और सीटों पर उप चुनाव होना है. ऐसे में भाजपा के सामने अब उप चुनावों में इज्जत बचाने का सवाल खड़ा हो गया है