भीम आर्मी डिफेंस कमेटी के संयोजक प्रदीप नरवाल का एक लेख चिट्ठी चर्चित वेबसाइट ‘द वायर’ में प्रकाशित हुई है. उसका जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि यह लेख आपको जेल जाने के बाद से अब तक चंद्रशेखर रावण के बारे में बताते हैं. वैसे जो चंद्रशेखर के जेल जाने के बाद उनसे कई लोग मिलने गए लेकिन प्रदीप उन कुछ एक लोगों में हैं, जिन्होंने हर महीने चंद्रशेखर रावण से जेल में मुलाकात की. इस आलेख में प्रदीप ने उन सारी बातों का जिक्र किया है, जो इन बीते महीनों में चंद्रशेखर औऱ प्रदीप के बीच हुई.
चंद्रशेखर को शेखर बुलाने वाले प्रदीप ने लिखा है- हमारी ये लड़ाई और हमारी दोस्ती 9 मई के बाद शुरू हुई थी. 8 जून 2017 को चंद्रशेखर आजाद को जेल हुई थी, तब से मैं लगभग हर महीने चंद्रशेखर से मिलता रहा हूं. जब पहली बार 18 जून को मैं शेखर से जेल में मिलने गया तो लगा जल्द सब ठीक हो जाएगा, शायद सब जल्द जेल से बाहर आ जाएंगे. तब भीम आर्मी के लगभग 42 कार्यकर्ता और शब्बीरपुर गांव के सोनू पहलवान जेल में थे. देखते-देखते 5 महीने बीते और धीरे-धीरे लगभग सभी लोगों को जमानत मिल गई. आखिरी में बस तीन व्यक्ति जेल में थे, सोनू पहलवान, कमल वालिया और चंद्रशेखर.
1 नवंबर 2017 को चंद्रशेखर और कमल वालिया को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई, लेकिन 2 नवंबर को साथी शेखर पर रासुका लगा दी. रासुका सोनू पहलवान पर भी लगी थी. 25 जनवरी 2018 को मैं आखिरी बार चंद्रशेखर से मिला था, तब उसे एक चिट्ठी मिली थी जिसमें लिखा था कि एडवाइजरी बोर्ड ने साथी शेखर पर 6महीने तक रासुका पक्की कर दी है और ये आगे भी बढ़ाई जा सकती है. साथ ही सोनू सरपंच पे भी रासुका पक्की हो गई है. हर बार की तरह चंद्रशेखर के चेहरे पर वही हंसी थी, जो 18 जून से मैं लगातार देख रहा हूं, चेहरे पर कोई शिकस्त नहीं, मिलते ही मुस्कान और देखते ही जोर से जय भीम बोलना.
18 जून से आज तक करीब 7 महीने से अधिक समय हो चुका है, बीच में कई बार शेखर के परिवार से मिला, उनके भाई से मिला. उनकी मां बहुत हिम्मत वाली है पर वक्त की कठोरता कई बार उनकी आंखों में भी आंसू ला देती है. लगभग 2 महीने पहले शेखर को खराब सेहत के चलते मेरठ अस्पताल में भर्ती कराया गया था पर वहां से भी बिना ठीक इलाज के उन्हें वापस जेल भेज दिया गया.
आज तक शेखर ने कभी कोई शिकायत नहीं की, जब मिलता हूं तो बाबा साहेब की, साहेब कांशीराम, भगत सिंह और नेल्सन मंडेला की बात होती है. हर बार हंसते-हंसते कब मुलाकात का समय खत्म हो जाता है कि पता ही नहीं चलता.
लेकिन इस बार बात कुछ और थी. 9 मई के बाद शेखर पर 27 मुकदमे लगे थे जिसमें से उनको सब में जमानत मिल गयी है.
शेखर ने हंसते-हंसते बताया कि उसके आखिरी केस की जमानत का ऑर्डर और रासुका की चिट्ठी एक ही दिन आई. रासुका का लेटर तो पढ़ने से पहले ही उसने दस्तखत कर दिया और बाद में पढ़ा क्योंकि उसे पता था कि इसमें क्या लिखा होगा. उसने कहा, ‘ जो मैंने सोचा था वही लिखा था, दलितों के लिए हुक्मरानों की एक चुनौती और धमकी की दास्तान कि अपने हक मत मांगो वरना ऐसे ही जेल में सड़ोगे.’
आज पूरे देश का शोषित समाज चंद्रशेखर आजाद की रिहाई का इंतजार कर रहा है, लेकिन रिहाई तो दूर है, सवाल आज इस लड़ाई में जिंदा रहने का है. शेखर पिछली बार बोले कि उनकी जेल का तबादला किया जा सकता है. बात ही बात में कई बार शेखर कहते हैं, ‘समाज के लिए काम करने का बहुत मन है लेकिन भाजपा कभी मुझे जेल से बाहर आने नहीं देगी, मैं मायूस नहीं दिख सकता, किसी के सामने आंखों में आंसू लाकर टूट नहीं सकता क्योंकि मेरे समाज को लोगों ने बहुत तोड़ा है, अभी तो बस एक चारा है वो है समाज के लिए संघर्ष.’
अब मेरा भी जेल में जाने का मन नहीं होता क्योंकि जब आप जेल में किसी राजनीतिक साजिश से आरोपी बनाए व्यक्ति से मिलते हैं तो उसे आपसे बड़ी उम्मीद होती है कि आप कुछ करेंगे और उनकी बेगुनाही साबित करेंगे.
– द वायर में प्रकाशित प्रदीप नरवाल के आलेख का अंश
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