गठबंधन के लिए दलित-मुस्लिम मतों को बचाना बड़ी चुनौती

भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए सपा-बसपा और रालोद पहली बार इस लोकसभा चुनाव में प्रदेश में एकसाथ आए हैं. मगर, गठबंधन के लिए अपनी रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने की राह आसान नहीं है. राज्य में दलित, मुस्लिम और जाट मतों को बचाना गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती होगी. इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस जहां लगातार प्रयास कर रही है, वहीं भाजपा ने भी दलित और जाट समुदायों का साथ पाने के लिए खास रणनीति बनाई है.

कांग्रेस की बात करें तो सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर उसने मुस्लिम प्रत्याशियों को भी चुनावी रण में उतारा है. इसके साथ ही भीम आर्मी के सहारे भी कांग्रेस दलितों में सेंध लगा रही है. कांग्रेस का मानना है कि दलित और मुस्लिम उनका ही वोट बैंक है, जिसे वह फिर से अपने साथ जोड़ना चाहती है.

वहीं, जाट और दलित मतदाताओं में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने भी पूरी बिसात बिछा रखी है. इन दोनों ही वर्गों के बीच भाजपा की ओर से लगातार कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. जाट और दलित नेताओं को भाजपा ने संगठन में अहम पद देने के साथ ही कुछ नेताओं को राज्यसभा में भी भेजा है. इतना ही नहीं इन वर्गों के पार्टी नेताओं को अपने समुदायों के बीच भेजकर उन्हें केंद्र सरकार की लाभकारी योजनाओं का हवाला देकर भी वोट पक्के करने की कोशिश की जा रही है.

26 साल पहले भी सपा-बसपा की दोस्ती रंग लाई थी

सपा और बसपा के बीच सियासी दोस्ती 26 साल पहले भी रंग लाई थी. 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी गई थी. वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और सत्ता पर काबिज हुए. मगर, जून 1995 में हुए बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों दलों की दोस्ती टूट गई.

बसपा का सफर

14 अप्रैल 1984 को कांशी राम ने बसपा का गठन किया. उनके बाद मायावती ने इस पार्टी की कमान संभाली. मायावती उस दौरान दिल्ली में शिक्षिका थी. उन्होंने नौकरी छोड़कर राजनीतिक सफर की शुरुआत की. बसपा का पहला चुनाव चिन्ह चिड़िया था, लेकिन 1989 तक इस चुनाव चिन्ह पर उसे कोई जीत नहीं मिली. बाद में हाथी के निशान पर जीत मिलने पर बसपा ने हाथी को ही अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह बना लिया. मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं. मगर, 2014 के लोकसभा चुनाव में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी.

बसपा का इतिहास

चुनावी वर्ष          जीती सीटें (लोकसभा)         मिले मत (प्रतिशत में)
2014                   00                                19.77
2009                   20                                27.42
2004                   19                                24.67
1999                   14                                22.08
1998                   04                                20.90
1996                   06                                20.61

सपा का सफर

समाजवादी पार्टी (सपा) का गठन 4 अक्तूबर 1992 को हुआ था. मुलायम सिहं यादव ने जनता परिवार से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई. उन्होंने पहली बार बसपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें वह मुख्यमंत्री बने. 2012 में चुनाव जीतने पर मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया. पिछले लोकसभा चुनाव में सपा पांच सीटों पर ही जीत दर्ज करा सकी थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में वह सत्ता से बाहर हो गई.

सपा का इतिहास

चुनावी वर्ष      जीती सीटें (लोकसभा)      मत मिले (प्रतिशत में)
2014               05                           22.35
2009               23                           23.26
2004               35                           26.74
1999               26                           24.06
1998               20                           28.70
1996               16                           20.84

श्रोत- हिन्दुस्तान.कॉम

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