लोकसभा चुनाव 2019, बहुजन एजेंडा:सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति का एक नया शंखनाद!

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2 अप्रैल,2018 भारतीय आंदोलनों के इतिहास के बेहद खास दिनों में चिन्हिंत हो चुका है. उस दिन एससी/एसटी एट्रोसिटी एक्ट को कमजोर किये के खिलाफ,बिना किसी नामी-गिरामी नेता और संगठन के आह्वान के ही लाखों लोग सडकों पर उतरे और अभूतपूर्व भारत बंद का इतिहास रच दिए.बहुजन समाज के अभूतपूर्व दबाव में आकर तब केंद्र सरकार उस एक्ट में आवश्यक संशोधन करने का आश्वासन देने के लिए बाध्य हुई थी. उस भारत बंद से यह सत्य स्थापित हुआ था कि यदि वंचित बहुजन समाज के लोग संगठित होकर सडकों पर उतरें तो वे अपनी बड़ी से बड़ी मांगे पूरी करवा सकते हैं: सरकारों को झुकने के लिए बाध्य कर सकते हैं. 2018 के उस भारत बंद से प्रेरणा लेकर एक बार फिर बहुजन समाज के छात्र-गुरुजन, लेखक-एक्टिविस्ट 5 मार्च,2019 को 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ सड़कों पर उतरे और तानाशाही मोदी सरकर को झुका कर अपनी मांगे पूरी करवाने में सफल हो गए.बहरहाल जो ऐतिहासिक 2 अप्रैल 5 मार्च,2019 के भारत बंद का प्रेरणा का स्रोत बना, उस बंद को ऐतिहासिक रूप प्रदान करने के सिलसिले में 16 युवाओं को अपना प्राण बलिदान करना पड़ा था. बाद में भारत बंद के उन शहीदों शहादत को स्मरण करने व बहुजन-मुक्ति की दिशा में एक नया संकल्प लेने के इरादे से 5 मार्च के भारत बंद में अग्रणी भूमिका अदा करने वाले बुद्धिजीवियों ने ’संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले 2 अप्रैल,2019 को ‘रामलीला मैदान चलो’ का आह्वान किया.

उनके आह्वान पर 2 अप्रैल,2018 के शहीदों की शहादत को स्मरण करने के लिए देश के विभिन्न अंचलों से चलकर लोग भारी संख्या में लोग ऐतिहासिक रामलीला मैदान में उपस्थित हुए और कड़ी धूप में सुबह ग्यारह से शाम 6 बजे तक शहादत दिवस की कार्यवाई देखते रहे. उस दिन संविधान बचाओं संघर्ष समिति की ओर से शहीद परिवारों को शाल भेंट कर सम्मानित करने के साथ सरकार के समक्ष मांग राखी गयी कि शहीद परिवारों को एक-एक करोड़ की मुवावजा तथा तथा प्रत्येक के परिवार से एक सदस्य को विवेक तिवारी की विधवा की भांति नौकरी मिले. मांग यह भी रखी गयी कि शहर के चौक-चौराहों पर शहीदों की प्रतिमा लगे तथा 2 अप्रैल के भारत बंद में शामिल लोगों के मुकदमे वापस लिए जाएँ.

2 अप्रैल,2019 को ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 2 अप्रैल,2018 के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि देने के साथ ‘संविधान बचाओं संघर्ष समिति’ ने अप्रैल 2018 के भारत बंद से प्रेरणा लेते हुए एक और ऐसा काम किया जिसे सरल शब्दों में सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति का एक नया शंखनाद कहा जा सकता है.उस दिन संविधान बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े बौद्धिकों ने लोकसभा चुनाव-2019 के लिए 15 सूत्रीय ‘बहुजन मैनिफेस्टो’ जारी करने का ऐतिहासिक काम अंजाम दिया. इसके जरिये उन्होंने देश के राजनीतिक दलों के सामने एक नक्शा पेश कर यह बताया की देश के राजनीतिक दलों को किन मुद्दों पर चुनाव केन्द्रित करना चाहिए.इसके असर को जानने के लिए बहुजन मैनिफेस्टो पर नजर दौड़ा लेना होगा.

बहुजन मैनिफेस्टो में सबसे पहले जातिवार जनगणना पर कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के नाम पर एक आधा-अधूरा सर्वे कराया था। ऐसी घोषणा की गई कि वह काम 2015 में पूरा हो गया, लेकिन आज तक उसकी रिपोर्ट नहीं आई. सरकार एक श्वेतपत्र जारी करके बताएगी कि 4,893 करोड़ रुपए खर्च करके कराई गई उस जातिगत सर्वे का क्या हुआ. अगर ईमानदार और प्रामाणिक आंकड़ा मौजूद हुआ तो उसकी रिपोर्ट जारी की जाए. 2021 की जनगणना में जाति का कॉलम शामिल किया जाए और हर जातियों से संबंधित आंकड़े जारी किए जाएं. जाति की गिनती अलग से नहीं, बल्कि जनगणना में ही कराई जाए. इसका दूसरा बिंदु है आबादी के अनुपात में आरक्षण. जनगणना के आंकड़ों के आधार पर संविधान द्वारा चिह्नित सामाजिक समूहों यानी एससी-एसटी और ओबीसी को आबादी के अनुपात में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए. चूंकि सवर्ण गरीबों के आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की अदालत द्वारा लगाई गई सीमा तोड़ी जा चुकी है, इसलिए वंचित समूहों को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने में अब कोई बाधा नहीं है.ओबीसी आरक्षण 52 फीसदी किया जाएगा. यह घोषणापत्र तीसरे नंबर पर कहता है,’आरक्षण लागू करने के लिए कानून बने’. आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान होने के बावजूद एससी-एसटी-ओबीसी का कोटा नहीं भरा जाता. इसके लिए तमाम तरह के भ्रष्टाचार किए जा रहे हैं, लेकिन आरक्षण का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दंडित करने का कोई कानून नहीं है. इसलिए एक ऐसा कानून बनाया जाए, जिससे आरक्षण का नियम तोड़कर नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में भर्तियां करने वाले अधिकारियों को कैद और अर्थदंड दिया जाए और एक बार दंडित किए जाने के बाद उक्त अफसर को नियुक्ति की प्रक्रिया से हमेशा के लिए दूर रखा जाए. चौथे नंबर पर इसमें आरक्षण अनुपालन के लिए लोकपाल बनाये जाने की मांग उठाई गई है.

कोटा का बैकलॉग पूरा होने तक अनरिजर्व कटेगरी की नियुक्तियों पर रोक लगे, यह बात इसमें पुरजोर तरीके से उठाई गयी है .एससी-एसटी-ओबीसी के लाखों पद इतने साल बाद भी खाली पड़े हैं,जबकि अनरिजर्व कटेगरी के पद भर जाते हैं. इस वजह से नौकरशाही और शिक्षा संस्थानों में जबर्दस्त सामाजिक असंतुलन हो गया है. इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले तमाम बैकलॉग पूरे किए जाएं और ऐसा होने तक अनरिजर्व कटेगरी में अब और नियुक्तियां न की जाएं. जब कोटा फुल हो जाए, तो जिस कटेगरी के पद की वेकेंसी हो, उसे उसी कटेगरी से भरा जाए. रोस्टर लागू करने का यही एकमात्र तरीका है. निजी क्षेत्र में आरक्षण बहुजनों की पुरानी मांग रही है, जिसे इसमें पुरजोर तरीके से उठाते हुए कहा गया है कि भारत में 1992 के बाद से अबाध निजीकरण जारी है. कई सरकारी संस्थान निजी हाथों में दिए जा चुके हैं. उन कंपनियों में अब आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. एडहॉक और आउटसोर्सिंग की वजह से भी आरक्षण का प्रावधान कमजोर हुआ है. ऐसे में निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने के अलावा सामाजिक न्याय के अनुपालन का कोई रास्ता नहीं है. इसके पहले चरण में उन तमाम निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू किया जाए, जो कंपनियां सरकार से किसी तरह का लोन, सस्ती जमीन, टैक्स छूट आदि लेती हैं. मंडल आयोग की रिपोर्ट में इसका प्रावधान भी है. आउटसोर्सिंग में भी आरक्षण लागू हो,यह बात भी जोरदार तरीके से उठाई गयी है. लेकिन इसका सबसे क्रान्तिकारी पक्ष शायद सप्लाई और ठेकों में आरक्षण है. इस विषय में इसमें कहा गया है. 100 करोड़ तक के ठेके और सप्लाई में आरक्षण लागू किया जाए. केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय और पीएसयू में 100 करोड़ रुपए तक के तमाम ठेकों और सप्लाई के करारों में आरक्षण लागू किया जाए, ताकि एससी-एसटी-ओबीसी के उद्यमियों और व्यवसायियों को राष्ट्र निर्माण में हिस्सा लेने का मौका मिल सके. इसी तरह बैंक ऋण में सामाजिक विविधता सुनिश्चित की जाने की मांग भी बहुत अहम् है.

इसके अतिरिक्त उच्च न्यायपालिका में आरक्षण लागू किया जाए और राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग का गठन किया जाए तथा साथ ही 13 पॉइंट रोस्टर खत्म करने के लिए कानून बनाया जाए, यह बात भी जोरदार तरीके से कही गयी है. ओबीसी आरक्षण से क्रीमी लेयर हटाया जाय यह मांग भी 15 सूत्रीय एजंडे में शामिल की गयी है. किसानों से कर्ज वसूली में एनपीए की वसूली के लिए समान तरीका अपनाया जाय, यह बात भी कही गयी है. लेकिन इसका बेहद क्रन्तिकारी एजेंडा है : राजनीतिक नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने की मांग. इसके पक्ष में कहा गया है,’ सरकारी नौकरियों के अलावा देश में बड़ी संख्या में राजनीतिक नियुक्तियां होती हैं, ऐसी नियुक्तियां पीएसयू और बैंकों के बोर्ड से लेकर मंत्रालयों और कंपनियों की सलाहकार समितियों, अकादमियों से लेकर राजदूत और राज्यपाल के रूप में की जाती है. इन नियुक्तियों में आरक्षण लागू किया जाए’. सरकारी भूमि का भूमिहीन एससी-एसटी और ओबीसी में बंटवारा करने तथा शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च मौजूदा स्तर से दोगुना किया जाए, यह बात भी बेहद प्रभावित करने वाली है. यह सब बातें इस बात की सूचक हैं कि 2 अप्रैल,2019 को बहुजन एजेंडे के जरिये सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति का एक नया शंखनाद हो चुका है, जिसके लिए संविधान बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े प्रो.रतनलाल, महेंद्र नारायण सिंह यादव, वामन मेश्राम, दिलीप मंडल, अनिल जयहिंद,अनिल चमडिया और इनकी टीम को साधुवाद दिया जा सकता है.

वैसे तो यह ऐतिहासिक दलित एजेंडा 2 अप्रैल,2019 को राष्ट्र के समक्ष पेश किया गया है, किन्तु इससे जुड़े बुद्धिजीवी कुछ सप्ताह पूर्व से ही विभिन्न पार्टियों से संवाद बना रहे थे. फलस्वरूप पिछले दो-तीन दिनों में गैर-भाजपा दलों के जो घोषणापत्र जारी हुए है, उनमें इसका असर देखा जा रहा है. संविधान बचाओं समिति द्वारा जारी दलित अजेंडे का मुख्य जोर नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग-व्यापार,राजनीतिक नियुक्तियों में आरक्षण लागू करवाने पर है और गैर-भाजपा दलों के घोषणापत्रों इसे जगह मिल रही है. अब बहाजन समाज की जिम्मेवारी बनती है कि वह बहुजनवादी दलों के घोषणापत्रों में दलित एजेंडे को शामिल करवाने के लिए आवश्यक दबाव बनाये और जो दल इसे अपने मैनीफेस्तो में जगह नहीं देते, उन्हें चुनाव में सबक सिखाये.

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