राजस्थान यूनिवर्सिटी में ABVP-NSUI फेल, ‘दलित छात्र’ ने बनाया जीत का रिकॉर्ड

राजस्थान की छात्र राजनीति के सबसे बड़े केंद्र राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव के नतीजे दोनों प्रमुख छात्र संगठनों के लिए चौंकाने वाले रहे. बागी निर्दलीय उम्मीदवार विनोद जाखड़ ने चार हजार से अधिक वोटों से एससी उम्मीदवार की रिकॉर्ड जीत हासिल की.

राजस्थान यूनिवर्सिटी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब निर्दलीय एससी उम्मीदवार अध्यक्ष बना है. विनोद ने इस जीत के साथ ही यूनिवर्सिटी में निर्दलीय उम्मीदवार के अध्यक्ष बनने की हैट्रिक पूरी हो गई. लेकिन इसी के साथ एक बार फिर यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और और नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) की स्टूडेंट पॉलिटिक्स भी पूरी तरह से फेल हो गई.

जातिगत समीकरण बैठाते हुए दोनों संगठनों ने जाट उम्मीदवार को टिकट बांटे और इसी के साथ एनएसयूआई के बागी विनोद की जीत की संभावनाएं भी प्रबल हो गई. 22 हजार 677 छात्रों में से कुल 11 हजार 516 ने वोट डाला और सबसे अधिक समर्थन जुटाने सफल रहे निर्दलीय विनोद जाखड़.

यूं तो विनोद की आम छात्रों में मजबूत पकड़ और विद्यार्थी हितों के लिए लंबे समय से सक्रियता काम आई लेकिन एक वजह उसकी कई बड़े आंदोलनों में भूमिका, भूख हड़ताल आदि को एनएसयूआई ने टिकट बांटते समय दरकिनार करना भी रहा. इसके चलते विद्याथियों के लिए हैल्प डेस्क लगाकर कैम्पस में उनकी मदद करने वाले विनोद को बगावत करनी पड़ी. और जीत भी हासिल हुई.

दोनों दलों ने जातिगत समीकरणों के आधार पर जाट उम्मीदवारों को टिकट दी. जानकारों के अनुसार यह मैसेज गलत गया और पढ़े-लिखे स्टूडेंट्स ने संगठन गत राजनीति से ऊपर उठकर वोट डाले.

एनएसयूआई की उम्मीदवारों की कतार में पहले पायदान पर आने वाले विनोद को अंतिम समय पर टिकट नहीं मिलने से आम स्टूडेंट की सहानुभूति मिली.

पूर्व में यूनिवर्सिटी राजस्थान कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके थे विनोद, छात्रों से सम्पर्क भी काम आया. यूनिवर्सिटी कैम्पस के हॉस्टल स्टूडेंट्स का भी विनोद का फायदा मिला.

एनएसयूआई पदाधिकारी पर यूनिवर्सिटी में हुए हमले के मामले में अरावली हॉस्टल पर आरोप लगे थे. ऐसे में एससीएसटी वोटों का भी ध्रुवीकरण हुआ.

दोनो संगठनों पर धन, बल के आरोप लगे. पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप लगने से संगठनों के प्रति आम स्टूडेंट की नाराजगी भी बढ़ी. कैम्पस में दोनों बड़े संगठनों के भीतर घात का भी निर्दलीय को फायदा मिला. एनएसयूआई और कांग्रेस के नेताओं का निर्दलीय प्रत्याशी को खुलेआम सपोर्ट.

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